जै बाबा शेरे शाह जी | जै बाबा मुराद शाह जी | जै बाबा लाडी शाह जी
नकोदर शहर जिसे पीरों और फ़क़ीरों की धरती भी कहा जाता है. न-को-दर जिस का मतलब ही है, इस जैसा ना कोई दर. जहाँ ब्रहम ज्ञानीयों ने जन्म लिया और इस धरती को चार चाँद लग गए. आज़ादी से पहले की बात है एक फ़क़ीर बाबा शेरे शाह जी पाकिस्तान से पंजाब आये. जिन्होंने रहने के लिए नकोदर की धरती को चुना. जो वीरानों और जंगलों में ही रहना पसंद करते थे. बाबा जी ज़्यादां तर लोगों को अपने पास आने से रोकते थे जिससे उनकी इबादत में विघन ना पड़े. और कभी कभी छोटे पत्थर भी मारते जिससे उन्हें लोग पागल समझें और उनके पास ना आएं. वह अपना ज़्यादां तर वक़्त ईष्वर की बंदगी में ही लगाते थे और वारिस शाह की हीर पढ़ते रहते थे. नकोदर शहर में एक ज़ैलदारों का परिवार भी रहता था जो पीरों फ़क़ीरों की सेवा के लीये सदा तैयार रहते थे. एक बार उनके घर एक फ़क़ीर आए जिनकी उन्होंने बहुत सेवा की, फ़क़ीर ने खुश होकर कहा “मांगो जो माँगना चाहो”. उन्हों ने कहा “ईष्वर का दिया सब कुछ है बस भगवान का नाम चाहिए”. फ़क़ीर ने कहा “एक नहीं बल्कि दो दो भगवान का नाम लेने वाले तुम्हारे पैदा होंगे”. उस परिवार में जल्दी ही एक बच्चे ने जन्म लिया जिसका नाम विद्या सागर रखा गया. जिन्हे आज हम बाबा मुराद शाह जी के नाम से जानते हैं. बाबा जी तीन भाई थे, बाबा जी सबसे छोटे थे. बाबा जी पढ़ाई लिखाई में बहुत ही अब्वल थे और उस ज़माने में भी बहुत आगे तक पढ़े. पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने नौकरी शुरू कर दी, बाबा जी बिजली बोर्ड दिल्ली में SDO के पद पर काम करते थे. नकोदर शहर जिसे पीरों और फ़क़ीरों की धरती भी कहा जाता है. न-को-दर जिस का मतलब ही है, इस जैसा ना कोई दर. जहाँ ब्रहम ज्ञानीयों ने जन्म लिया और इस धरती को चार चाँद लग गए. आज़ादी से पहले की बात है एक फ़क़ीर बाबा शेरे शाह जी पाकिस्तान से पंजाब आये. जिन्होंने रहने के लिए नकोदर की धरती को चुना. जो वीरानों और जंगलों में ही रहना पसंद करते थे. बाबा जी ज़्यादां तर लोगों को अपने पास आने से रोकते थे जिससे उनकी इबादत में विघन ना पड़े. और कभी कभी छोटे पत्थर भी मारते जिससे उन्हें लोग पागल समझें और उनके पास ना आएं. वह अपना ज़्यादां तर वक़्त ईष्वर की बंदगी में ही लगाते थे और वारिस शाह की हीर पढ़ते रहते थे. नकोदर शहर में एक ज़ैलदारों का परिवार भी रहता था जो पीरों फ़क़ीरों की सेवा के लीये सदा तैयार रहते थे. एक बार उनके घर एक फ़क़ीर आए जिनकी उन्होंने बहुत सेवा की, फ़क़ीर ने खुश होकर कहा “मांगो जो माँगना चाहो”. उन्हों ने कहा “ईष्वर का दिया सब कुछ है बस भगवान का नाम चाहिए”. फ़क़ीर ने कहा “एक नहीं बल्कि दो दो भगवान का नाम लेने वाले तुम्हारे पैदा होंगे”. उस परिवार में जल्दी ही एक बच्चे ने जन्म लिया जिसका नाम विद्या सागर रखा गया. जिन्हे आज हम बाबा मुराद शाह जी के नाम से जानते हैं. बाबा जी तीन भाई थे, बाबा जी सबसे छोटे थे. बाबा जी पढ़ाई लिखाई में बहुत ही अब्वल थे और उस ज़माने में भी बहुत आगे तक पढ़े. पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने नौकरी शुरू कर दी, बाबा जी बिजली बोर्ड दिल्ली में SDO के पद पर काम करते थे. जहाँ बाबा जी काम करते थे वहां उनके साथ एक मुस्लिम लड़की भी काम करती थी. बाबा जी उनसे रूहानी प्यार करते थे, एक दिन उस लड़की की शादी तय हो गयी और उसने बाबा जी से कहा कि अगर तुम्हे मुझसे शादी करनी है तो पहले मुस्लमान बनना होगा. यह सुनकर बाबा जी ने घर वापिस चले जाने का फैसला किया, नौकरी छोड़ दी और दुनिया की हर चीज़ से मोह टूट गया. उन्होंने वारिस शाह की “हीर” किताब खरीदी और हीर पढ़ते पढ़ते अपने शहर नकोदर की तरफ पैदल ही चलने लगे, और रास्ते में जितने भी धार्मिक स्थान आए वहां सजदा करते गए और नकोदर पहुँच गए. जब घर के पास पहुंचे तो उन्हें बाबा शेरे शाह जी के दर्शन हुए. शेरे शाह जी ने आवाज़ लगायी "ओह विद्या सागर कहाँ जा रहे हो ?" बाबा जी ने सोचा कि यह कोई रूहानी इंसान लग रहे हैं और पास चले गए. शेरे शाह जी ने फिर पूछा "क्यों फिर मुस्लमान बनना है ?" बाबा जी ने कहा "जी बनूँगा". शेरे शाह जी ने कहा जाओ फिर एक बार अपने घर जाकर सबसे मिल आओ और आकर टूटी प्यार की तार को ईष्वर से जोड़लो, फिर ना मुस्लमान की ज़रूरत ना हिन्दू की. बाबा मुराद शाह जी घर जाकर सबसे मिल आए और शेरे शाह जी के पास रहकर उनकी सेवा करने लगे. बाबा शेरे शाह जी की तरफ से उन्हें बहुत इम्तिहान देने पड़े पर वह सभी पास करते गए और उनके सबसे प्यारे बन गए. पर लोगों ने बातें करनी शुरू करदी कि ज़ैलदारों का लड़का नौकरी छोड़ कर एक फ़क़ीर के पीछे लग गया है. यह सुनकर बाबा जी के बड़े भाई उनको अक्सर पकड़ कर घर ले आते और कभी कभी उनपर हाथ भी उठाते. बाबा जी ने कई बार मना किया और बोला “लाला हाथ नहीं उठाना”, पर बाबा जी के बड़े भाई नहीं माने, बाबा जी ने अंत में कहा “ठीक है लाला तुम ऐसे नहीं मानोगे, अब तुम्हें फिर देखूंगा मारते हुए जब तुम्हारा बेटा तुम्हारी आँखों के सामने फ़क़ीर बनेगा”. फ़क़ीरों की ज़ुबान हमेशा अटल होती है. यह कहकर बाबा जी शेरे शाह जी के पास चले गए. ऐसे ही चलता रहा, आज़ादी के कुछ साल बाद एक दिन शेरे शाह जी के बेटे और बहू उन्हें वापिस लेकर जाने के लिए आ गए. शेरे शाह जी कहने लगे कि मुझे लेकर जाने से पहले विद्या सागर से पूछलो. बाबा जी बोले कि आपके पिता हैं मैं भला कैसे मना कर सकता हूँ, जैसे आप ठीक समझें. फिर बाबा जी शेरे शाह जी से बोले “कि मैं आपके बिना कैसे रहूँगा, आप मुझे बहुत याद आओगे”. शेरे शाह जी ने कहा कि जब भी तू मुझे याद किया करेगा मैं तुझे मिलने आ जाया करूँगा. फिर जब शेरे शाह जी जाने लगे तब बाबा जी को पास बुलाया और बोले मेरे बाद दुनिया तुझे याद रखेगी, तेरा नाम रहती दुनिया तक आबाद रहेगा, तूं मेरी पीढ़ी का वारिस है, और आज के बाद दुनिया तुझे मुराद शाह के नाम से याद रखेगी और जो भी तेरे दर पे आएगा मुँह मांगी मुरादें पायेगा.
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